इस पोस्ट के माध्यम से हम हिंदी में जन्माष्टमी की कथा/ कहानी अर्थात् Janmashtami story in Hindi बताएँगे।
दोस्तों जन्माष्टमी हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। ये पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरे देश में आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय नागरिक भी इस त्यौहार को पूरी आस्था एवं हर्षोल्लास से मनाते हैं। श्री कृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं।
वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा। तो कभी बन जाते हैं राधा के माधव। श्री कृष्ण ने अपने इस मानव अवतार के संपूर्ण जीवन में तमाम लीलाएँ रची। और अपनी हर लीला से भक्तों का मन मोह लिया। आज हम आपको उन्हीं श्री कृष्ण के जन्म की कथा और भारत में जन्माष्टमी के त्यौहार के महत्व के बारे में बताने जा रहे हैं।
कब मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्यौहार ?( When is Janmashtami Celebrated?)
Contents
- 1 कब मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्यौहार ?( When is Janmashtami Celebrated?)
- 2 जन्माष्टमी की कथा (Janmashtami Story in Hindi)
- 3 किस तरह मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्यौहार ( How Is Janmashtami Celebrated)
- 4 दही हांडी का महत्व ( Importance Of Dahi Handi)
- 5 हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व (Importance Of Janmashtami Among Hindus )
- 6 FAQ – आम तौर पर पूछे गए सवाल (Janmashtami Story in Hindi)
- 7 हमारी अन्य पोस्ट्स पढ़ें
जन्माष्टमी हिंदू calendar के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। द्वापर युग में इसी दिन भगवान विष्णु ने मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। भाद्रपद अंग्रेजी calendar के अनुसार जुलाई- अगस्त के बीच का समय होता है। 2023 में जन्माष्टमी 06 सितंबर 2023 को बुधवार के दिन मनाई जाएगी। तो आइये जानते हैं श्री कृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा और जन्माष्टमी के त्यौहार का महत्व।
जन्माष्टमी की कथा (Janmashtami Story in Hindi)
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। इसी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने इस संसार को पापियों के अत्याचारों से बचाने के लिए द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में दिन अवतार लिया था।
श्री कृष्ण ने माता देवकी की कोख से अपने अत्याचारी मामा कंस के प्रकोप और अत्याचारों से दुनिया को बचाने के लिए मथुरा में जन्म लिया था परंतु इनका पालन पोषण माता यशोदा ने गोकुल में किया था। तो आइये आपको भगवान श्रीकृष्ण की जन्म की पौराणिक कथा सुनाते हैं जिसको जन्माष्टमी की कथा भी कहा जाता है, जो इस प्रकार है-
जन्माष्टमी की कथा – कृष्ण जन्म (Janmashtami Story in Hindi – Birth of Lord Krishna)
‘द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज किया करते थे। उसका एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र का नाम कंस और पुत्री का नाम देवकी थी। उसके अत्याचारी पुत्र कंस ने सिंहासन और राज पाठ के मोह में आकर उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा।
कंस एक बेहद अत्याचारी राजा था। अपनी ताकत दिखाने के लिए अपनी प्रजा को प्रताड़ित करना तो मानो उसका शौक ही बन गया था। वह अपनी प्रजा को मारता उनसे अत्यधिक कर वसूलता। कंस के राज काल में प्रजा बेहद दुखी थी। लेकिन बेचारी दुखी प्रजा जाती भी तो किसके पास राजा के आगे किसकी चल सकती है।
पर कहते हैं ना एक ना एक दिन सभी के पापों का घड़ा भारत है कंस के साथ भी ऐसा ही हुआ। कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव नाम के यदुवंशी सरदार के साथ हुआ था। कंस अपनी बहन से बहुत अधिक प्रेम करता था। देवकी कंस की लाडली हुआ करती थी। और इसलिए कंस एक बार स्वयं अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था कि तभी अचानक रास्ते में आकाशवाणी हुई।
आसमान से आवाज आई कि ‘हे कंस, अपनी जिस बहन देवकी को आज तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। तेरी इसी बहन के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।’ हालांकि कंस अपनी बहन से बहुत अधिक प्रेम तो करता था लेकिन उसे अपने प्राणों और राजगद्दी का मोह भी तो था। जब कंस ने आकाशवाणी की ये आवाज सुनी तो मृत्यु का भय उसे सताने लगा।
जन्माष्टमी की कथा में ये एक सीख भी मिल जाती है की राज्य/ सत्ता की मोह माया में सगे सम्बन्धी भी अपने नहीं रह जाते। चलिए अब जन्माष्टमी कथा को आगे बढ़ाते हैं।
फिर उसने सोचा यदि वह देवकी के पति वसुदेव को मार दे तो देवकी संतान को जन्म ही नहीं दे पायेगी। तो ना ही उसका काल कभी जन्म लेगा और ना ही मृत्यु होगी। यह सोचकर कंस तेजी से वसुदेव की ओर बढ़ा और उनको मारने के लिए तलवार निकाल ली।
जैसे ही कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। देवकी अपने पति के प्राणों को संकट में देखकर भयभीत हो गयी। वो अपने भाई को भली भाँति जानती थी। उसे पता था कि कंस अपनी जान बचाने के लिए किसी के भी प्राण ले सकता था।
इसलिए देवकी ने अपने प्राण प्रिय पति की जान बचाने के लिए कंस से विनयपूर्वक कहा- ‘मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी फिर तुम उसका चाहे जो करना लेकिन मेरे पति की मारने जान बख्श दो। मेरे पति को मारकर तुम्हें क्या लाभ मिलेगा।
कंस को देवकी की बात ठीक लगी उसने सोचा की उसके प्राणों को खतरा देवकी के आँठवें पुत्र से है ना की वसुदेव से इसलिए उसे मारने का कोई लाभ नहीं होगा।और वह पैदा होते ही देवकी के पुत्रों को मार देगा फिर काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड पाएगा। ये सोचकर कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। लेकिन उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। मौत का डर कंस में मन में गहराने लगा था। वह ये नहीं चाहता था कि देवकी और वसुदेव का ये पुत्र किसी भी हाल में जीवित बचे इसलिए उसने पहले से ही कारागार में देवकी और वसुदेव पर कड़े पहरे बैठा दिए गए।
उसी समय दूर नंद गाँव में नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। जिस समय वसुदेव और देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं ईश्वर की रची हुई माया थी।
कंस ने जिस कोठरी में देवकी और वसुदेव को कैद किया था उसमें अचानक प्रकाश उत्पन्न हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो।
इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी। और वैसा ही हुआ काल कोठरी के द्वार खुल गए सभी पहरेदार सो गए।
ईश्वर के कहे अनुसार वसुदेव उसी समय नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए।
कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए। अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जन्म ले चुका है।
वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ यह थी श्री कृष्ण जन्म की कथा। धारावाहिक महाभारत में जन्माष्टमी की कथा का रूपांतरण बहुत ही सुंदर तरीक़े से किया गया था।
किस तरह मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्यौहार ( How Is Janmashtami Celebrated)
दोस्तों कृष्ण जन्माष्टमी दो भागों में मनाई जाती है पहला तो व्रत और दूसरा कृष्ण जन्म का उत्सव। जैसा कि हमने आपको श्री कृष्ण जन्म कथा / जन्माष्टमी की कथा में बताया कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात को मध्यरात्रि में हुआ था इसलिए श्री कृष्ण के भक्त उनका जन्मोत्सव भी मध्यरात्रि 12 बजे ही मनाते हैं।
लेकिन जन्माष्टमी का ये त्यौहार सुबह से ही शुरू हो जाता है। भक्त इस दिन पूरा दिन उपवास रखते हैं। ये उपवास कैसा भी आपकी श्रृद्धा अनुसार हो सकता है कुछ लोग निर्जल व्रत रखते हैं।
लेकिन अगर आपमें निर्जल वृत रखने का सामर्थ्य नहीं है तो आप फलाहारी कर सकते हैं। फलाहारी का मतलब होता है। फल इत्यादि का सेवन कर लेना। ऐसे वृत में बस अनाज खाने की मनाही होती है। उसके बाद बारी आती है कृष्ण जन्म का उत्सव मनाने की। इसके लिए लोग सुबह से ही तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। मंदिरों को सजाते हैं। सुंदर सुंदर झांकियाँ बनाते हैं।
जन्माष्टमी का मुख्य आकर्षण ये झांकियाँ ही होती है। उसके बाद मध्य रात्रि में जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ था उसी समय जन्माष्टमी का पूजन शुरू किया जाता है।
जन्माष्टमी पूजा विधि
दोस्तों हम यहाँ आपको जन्माष्टमी की पूजा की विधि बता रहे हैं।
- पूजन के लिए श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डूगोपाल की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं,
- फिर दूध, दही, घी, शकर, शहद, केसर के घोल जिसे पंचामृत भी कहा जाता है, से स्नान कराकर फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं,
- फिर बाल गोपाल की मूर्ति को सुन्दर व स्वच्छ वस्त्र पहनाएं
- भोग लगाकर पूजन करें व फिर श्रीकृष्णजी की आरती उतारें
- उसके बाद भक्तजन प्रसाद ग्रहण करें
- व्रत करने वाले लोग दूसरे दिन यानी नवमी के दिन अपने व्रत का पारण करें।
भारत के कुछ राज्यों में पूजा विधि में जन्माष्टमी की कथा का वर्णन भी होता है।
भारत के विभिन्न नगरों की जन्माष्टमी
दोस्तों इसके साथ ही भारत के अलग अलग राज्यों में जन्माष्टमी मनाने के अलग अलग तरीके है। जैसे कुछ शहरों में श्री कृष्ण के जन्म की खुशियाँ मनाने के लिए फूलों की होली खेली जाती है।
कुछ शहरों में इस दिन रंगों से भी होली खेली जाती है। श्री कृष्ण की जन्म नगरी मथुरा में तो इसे बेहद शानदार और मनमोहक तरीके से मनाया जाता है। कई शहरों में तो कृष्ण जन्म के अगले दिन दही हांडी का उत्सव भी मनाया जाता है।
कहा जाता है श्री कृष्ण माखन चोर भी थे। वे अपनी माँ यशोदा से छिप छिप कर माखन खाया करते थे यही नहीं वे अन्य बृजवासियों के घरों से भी माखन चुरा लिया करते थे।
और इसलिए कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की मटकियों में माखन भर कर ऊँचाई पर लटकाया जाता है और इसके बाद अलग अलग टीमें अपने मेंबर्स की मदद पिरामिड बनाकर इस मटकी को फोड़ने की कोशिश करती हैं। कई जगहों पर तो इसे प्रतियोगिता के तौर पर देखा जाता है और मटकी फोड़ने वाली team को इनाम भी दिया जाता है।
दही हांडी का महत्व ( Importance Of Dahi Handi)
दोस्तों जैसा कि हम जानते हैं भले ही श्रीकृष्ण ने देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया था लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा और नंद ने किया था।
अपने बचपन में श्रीकृष्ण बेहद ही नटखट थे, पूरे गांव में उन्हें उनकी शरारतों के लिए जाना जाता था। श्रीकृष्ण को माखन, दही और दूध काफी पंसद था। उन्हें माखन इतना पंसद था जिसकी वजह से पूरे गांव का माखन चोरी करके खा जाते थे। इतना ही उन्हें माखन चोरी करने से रोकने के लिए एक दिन उनकी मां यशोदा को उन्हें एक खंभे से बांधना पड़ा और इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण का नाम ‘माखन चोर’ पड़ा।
वृंदावन की महिलाएँ कृष्ण के माखन चोरी की आदत से काफी परेशान थी। इसलिए उन्होंने अपना माखन बचाने का एक नया तरीका निकाला और माखन भरी मटकियों को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया। वृन्दावन में महिलाओं ने मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया जिससे की श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके।
लेकिन नटखट कृष्ण की समझदारी के आगे उनकी यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई। माखन चुराने के लिए श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन को चुरा लेते थे।
वहीं से प्रेरित होकर दही हांडी का चलन शुरू हुआ। दही हांडी के उत्सव के दौरान लोग गाने गाते हैं जो लड़का सबसे ऊपर खड़ा होता है उसे गोविंदा कहा जाता है और ग्रुप के अन्य लड़कों को हांडी या मंडल कहकर पुकारा जाता है।
दही हांडी फोड़कर मक्खन निकालने की ये प्रक्रिया श्री कृष्ण के बचपन की उसी बाल लीला को दोहराने के तौर पर की जाती है। जहां मटकी को दही, घी, बादाम और सूखे मेवे से भरकर लटकाया जाता है।
लड़के ऊपर लटकी मटकी को फोड़ते हैं और अन्य लोग लोकगीतों और भजनों पर नाचते-गाते हैं। तमिलनाडु में दही हांडी को ‘उरीदी’ के नाम से जाना जाता है। दही हांडी महाराष्ट्र में होने वाली गोकुलाष्टमी का अहम हिस्सा है, जिसे काफी बड़े स्तर पर मनाया जाता है।
इस कार्यक्रम के लिए कई ग्रुप हफ्तों से प्रैक्टिस करते हैं। इन ग्रुप्स को मंडल कहा जाता है जो अपने लोकल एरिया में लटकी मटकी को फोड़ते हैं और इस कार्यक्रम में मटकी तोड़ने वाले ग्रुप्स को इनाम भी दिए जाते हैं। अगर आपको कभी महाराष्ट्र या गुजरात जाने का मौका मिले तो आप एक बार इस बड़े उत्सव की झलक जरूर देखें।
हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व (Importance Of Janmashtami Among Hindus )
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्रों में इसके व्रत को ‘व्रतराज’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस 1 दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है।
अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर हो तो वे इस दिन विशेष पूजा से लाभ पा सकते हैं।
तो दोस्तों ये थी कृष्ण जन्माष्टमी की कथा (Janmashtami Story in Hindi) और इस त्योहार का महत्व। हमारी ये जानकारी आपको कैसी लगी अपने विचार हमें कंमेंट में जरूर बताइए।
अगर आपको हमारी ये पोस्ट Janmashtami Story in Hindi पसंद आयी हो तो हमारी अन्य पोस्ट्स भी पढ़ें। आशा करते हैं की वो भी आपकी कसौटी पर खरी उतरेंगी।
FAQ – आम तौर पर पूछे गए सवाल (Janmashtami Story in Hindi)
When will Janmashtami celebrated in coming years? आने वाले वर्षों में जन्माष्टमी कब है?
Year | Date of Janmashtami |
---|---|
2021 | Monday, 30 August, 2021 |
2022 | Thursday, 18 August, 2022 |
2023 | Wednesday, 6 September, 2023 |
2024 | Monday, 26 August, 2024 |
2025 | Friday, 15 August, 2025 |
2026 | Friday, 4 September, 2026 |
2027 | Wednesday, 25 August, 2027 |
2028 | Sunday, 13 August, 2028 |
2029 | Saturday, 1 September, 2029 |
Why Panjiri is made on Janmashtami? जन्माष्टमी में पंजीरी क्यूँ बनायी जाती है?
पंजीरी जन्माष्टमी का प्रतीक है क्योंकि यह बच्चे के जन्म से संबंधित है और इसे नई माताओं को प्रस्तुत किया जाता है। यह बहुत सारे सूखे मेवे, गेहूं और सूजी का उपयोग करके बनाया जाता है जिसे देसी घी में भुना जाता है। इसे काफी पौष्टिक माना जाता है।”
Why is Janmashtami celebrated over 2 days? जन्माष्टमी को दो दिन क्यूँ मनाया जाता है?
श्री कृष्ण जन्माष्टमी को दो दिन तक मनाने के पीछे तिथि और नक्षत्र का विशेष महत्व और कारण है। पुराणों में उल्लेख है कि भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
How is Janmashtami celebrated? जन्माष्टमी का त्योहार कैसे मनाते हैं?
हिंदू जन्माष्टमी को उपवास, गायन, एक साथ प्रार्थना करने, विशेष भोजन तैयार करने और साझा करने, रात्रि जागरण और कृष्ण या विष्णु मंदिरों में जाकर मनाते हैं। प्रमुख कृष्ण मंदिर ”भगवत पुराण और भगवद गीता” के पाठ का आयोजन करते हैं।
Why do we celebrate Krishna Janmashtami? जन्माष्टमी का त्योहार क्यूँ मनाया जाता है?
जन्माष्टमी, हिंदू त्योहार भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) के महीने के अंधेरे पखवाड़े के आठवें (अष्टमी) दिन भगवान कृष्ण के जन्म (जन्म) का हर्ष मनाने के लिए है। कृष्ण कथा में आठ नंबर का एक और महत्व है कि वह अपनी मां देवकी की आठवीं संतान हैं।
How did Radha Die? राधा की मौत कैसे हुई?
अंतिम समय में उनके सामने भगवान श्रीकृष्ण आए। कृष्ण ने राधा से कहा कि उसने उससे कुछ मांगा, लेकिन राधा ने मना कर दिया। बांसुरी की धुन सुनते हुए राधा ने अपना शरीर त्याग दिया। राधा की मृत्यु को भगवान कृष्ण सहन नहीं कर सके और प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में उनकी बांसुरी को तोड़कर झाड़ी में फेंक दिया।
How did Krishna Die? श्री कृष्णा की मौत कैसे हुई?
महाभारत के अनुसार, यादवों के बीच एक त्योहार पर लड़ाई छिड़ जाती है, जो अंत में एक दूसरे की हत्या कर देते हैं। सोते हुए कृष्ण को हिरण समझकर, जरा नाम का एक शिकारी एक तीर चलाता है जो उसे घातक रूप से घायल कर देता है। कृष्ण जरा को माफ कर देते हैं और देह त्याग देते हैं।
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