माता शैलपुत्री की कहानी – 2 Inspiring Shailputri Maata Stories in Hindi

माता शैलपुत्री की कहानी – 2 Inspiring Shailputri Maata Stories in Hindi

Shailputri Maata Story in Hindi – माता शैलपुत्री की कहानी

Contents

पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता शैलपुत्री की कहानी, मंत्र, आरती, कथा, आदि जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।

यदि आपके घर भी नवरात्रि की पूजा होती है तो आपने भी नवरात्रि के शुरू होने से पहले की पावनता को जरूर महसूस किया होगा। नवरात्रि के पहले से ही लोग जोर-शोर से इसकी तैयारी में जुट जाते हैं।

मां दुर्गा के आगमन की खुशी में चारों तरफ एक पवित्र माहौल होता है। नवरात्रि की प्रथम पूजा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। हालांकि नवरात्रि का हर एक दिन महत्वपूर्ण है लेकिन पहली पूजा को काफी शुभ माना जाता है। इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा विधिवत की जाती है।

आपको बता दें कि मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन पूजा की जाने वाली माता शैलपुत्री काफी सौम्य और शांत हैं। माता शैलपुत्री को सफेद वस्त्र में चेहरे पर हमेशा मुस्कान लिए दर्शाया जाता है।

नवरात्रि के पहले दिन यदि सच्चे मन से मां शैलपुत्री की आराधना की जाए तो घर में पवित्रता आती है। आज के इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताएंगे कि माता शैलपुत्री की कहानी क्या है, शैलपुत्री मंत्र का जाप कैसे करें, माता शैलपुत्री की पूजा विधि और आरती क्या है। इन सब जानकारियों को प्राप्त करने के लिए कृपया इस लेख को अंत तक पढ़े।

माता शैलपुत्री की कहानी – Shailputri Maata Story in Hindi

सबसे पहले हम आपको मां शैलपुत्री की कहानी बताने जा रहे हैं। यह पौराणिक कथा काफी महत्वूर्ण है। इस कहानी के अनुसार मां शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है।

एक बार सती के पिता प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ करवाने का सोचा। इस यज्ञ में शामिल होने के लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा।

सती इस इंतजार में थी कि उनके पिता उन्हें निमंत्रण भेजेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। सती अपने पिता द्वारा संचालित यज्ञ में जाने को परेशान थीं लेकिन भगवान शिव ने उन्हें मना कर दिया। उन्होंने कहा कि बगैर निमंत्रण यज्ञ में जाना उचित नहीं है।

माता शैलपुत्री की कहानी  - Shailputri Maa Story
Source – Wikipedia

लेकिन सती बार-बार यज्ञ में जाने की अनुमति मांगते रही और भगवान शिव को उनकी बात माननी पड़ी। जब सती प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंची तो वहां कोई भी उनसे आदर या प्रेम से बात नहीं कर रहा था। सिर्फ उनकी माता को छोड़ सब मुंह फेरे जा रहे थे।

सती की बहनें उनका उपहास कर रही थी और शिव को भी तिरस्कृत कर रही थी। इतना ही नहीं प्रजापति दक्ष ने भी उनका अपमान किया। यह सब देख कर सती काफी दुखी हुई और उनसे यह अपमान सहन नहीं हुआ। उन्होंने यज्ञ की अग्नि में खुदको स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। यह देख भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। ऐसा माना जाता है कि सती ने फिर हिमालय के यहां शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।

आपको बता दें कि माता शैलपुत्री का वास वाराणसी में माना जाता है। काशी नगरी वाराणसी में मां शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर है जहां दर्शन करने से सारी मुरादें पूरी होती है।

साथ ही यदि नवरात्रि के प्रथम दिन प्रतिपदा को मां शैलपुत्री की आराधना करने से वैवाहिक जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। माता शैलपुत्री को वृषारूढ़ा भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इनका वाहन वृषभ है।

माता शैलपुत्री की बाईं हाथ में कमल और दाईं हाथ में त्रिशूल होता है। आपको बता दें कि माता शैलपुत्री का वाहन बैल है। तो ये थी माता शैलपुत्री की कहानी। अब देखते हैं कि शैलपुत्री मंत्र का जाप कैसे करें, माता शैलपुत्री की पूजा विधि और आरती क्या है।

माता शैलपुत्री की कहानी – माता शैलपुत्री मंत्र

नवरात्रि की प्रथम पूजा पर नीचे दी गई माता शैलपुत्री मंत्र का जाप करें।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥

ॐ या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ॐ शैलपुत्रै नमः।

माता शैलपुत्री पूजा की सामग्री

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा के लिए आपको इन सामग्रियों की जरूरत होगी –

  • लाल कपड़ा
  • चौकी
  • लाल झंडा
  • पान
  • सुपारी
  • कलावा
  • कलश
  • कुमकुम
  • लौंग
  • बताशे
  • कपूर
  • नारियल
  • जौ
  • मिश्री
  • केला,
  • घी,
  • दीप,
  • आम के पल्लव
  • मिठाई
  • जायफल
  • धूप
  • अगरबत्ती
  • मिट्टी
  • छोटी चुनरी
  • बड़ी चुनरी
  • मां दुर्गा की फोटो
  • लाल फूल
  • गंगाजल
  • ज्योत
  • फूलों से बना हार
  • माता का श्रृंगार सामान
  • उपले और दुर्गा सप्तशती।

इन सामग्रियों से माता शैलपुत्री की पूजा आरम्भ करें। यदि आप सोच रहे हैं कि पूजा कैसे आरंभ करें तो हमने नीचे माता शैलपुत्री की पूजा विधि आपके साथ शेयर की है।

माता शैलपुत्री की पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन यदि आप विधिवत मां शैलपुत्री की पूजा करें तो आपके घर सुख-समृद्धि आएगी। तो देखते हैं कि माता शैलपुत्री की पूजा विधि क्या है।

  • सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • एक चौकी पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर मां शैलपुत्री के चित्र को उसपर रखें। सफेद वस्त्र इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र काफी प्रिय है।
  • हो सके तो माता को सफेद फूल ही चढ़ाएं और साथ में सफेद बर्फी का भोग लगाएं। आपको बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा से साधक के मन में मूलाधार चक्र जागृत होता है।
  • एक पान के पत्ते पर लौंग और सुपारी रख कर माता शैलपुत्री को अर्पण करें। इससे आपके जीवन से नकारात्मक शक्तियां और क्लेश दूर होंगी।
माता शैलपुत्री की पूजा विधि
माता शैलपुत्री की पूजा विधि

इस दिन शैलपुत्री के पूजन के समय आपको कुछ बातों का ध्यान भी रखना होगा।

  • पूजा के समय गलती से भी अशुद्ध वस्त्र ना पहने।
  • साथ ही अपने घर के किसी भी कमरे में अंधेरा ना होने दे।
  • नवरात्रि के समय किसी भी नारी का तिरस्कार ना करें।

हालांकि ये बातें आपको हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए।

कई लोग मां शैलपुत्री की पूजा अलग विधि से करते हैं।

  • इस विधि में एक साबुन के पत्ते पर सत्ताईस फूलदार लौंग रखें।
  • फिर माता की फोटो के सामने घी का दीप जलाकर एक सफेद आसन बिछाकर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें।
  • माता को जल फूल चढ़ाकर “ॐ शैलपुत्रये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  • जब जाप सम्पूर्ण हो जाए तो लौंग को कलावे से बांधकर माला की तरह बना लें।
  • फिर अपने मन में जो भी इच्छा हो उसका ध्यान कर ये लौंग की माला माता शैलपुत्री को अपने दोनों हाथों से अर्पण करें।

इस तरह आपको शैलपुत्री के आशीर्वाद से हर कार्य में सफलता मिलेगी और परिवार में शांति भी आएगी।

माता शैलपुत्री की पूजा पर नहीं करने चाहिए ये काम

नवरात्रि के समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि नवरात्रि के पहले दिन यानी कि शैलपुत्री के पूजा से ही क्या-क्या नहीं करना चाहिए। पहले दिन से ही नवरात्रि के व्रत की शुरआत हो जाती है। जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें खासतौर पर इन नियमो का पालन करना चाहिए।

  • सबसे प्रमुख चीज़ यह है कि यदि आप नवरात्रि का कलश पूजन अखंड ज्योति जलाकर कर रहे हैं। तो कभी भी घर खुला छोड़कर नहीं जाना चाहिए।
  • नवरात्रि के समय जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें दाढ़ी-मूछ, बाल, इत्यादि नहीं कटवाने चाहिए। यह करना अशुभ माना जाता है।
  • इन दिनों में नाखून काटना भी अशुभ माना जाता है।
  • माता शैलपुत्री की पूजा के पहले से ही लहसुन और प्याज का सेवन बंद कर देना चाहिए। खासकर के नवरात्रि के नौ दिन तक लहसुन और प्याज का इस्तेमाल ना करें।
  • इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि में सिलाई-कढ़ाई भी नहीं करनी चाहिए। साफ़-सफाई का विशेष ध्यान रखें और गंदे या बिना धुले कपड़े ना पहनें।
  • ऐसा भी माना जाता है कि नवरात्रि के समय शारीरिक संबंध बनाने से व्रत का फल नहीं मिलता है। इसलिए इस वक़्त ब्रह्मचर्य पालन किया जाता है।
  • माता शैलपुत्री के पूजा से पहले ही मांस, मछली, और शराब का सेवन बंद कर दें। साथ ही व्रत करने वालों को चमड़े की बेल्ट या बैग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • नवरात्रि के व्रत की शुरआत शैलपुत्री की पूजा से होती है और इस समय में व्रत में खाने के रूप में अनाज और नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के भोजन में आप सिंघाड़े या कुट्टू का आटा, समक के चावल, साबूदाना की खिचड़ी, और सेंधा नमक का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • इस महत्वपूर्ण व्रत में आपको कमजोरी भी आ सकती है। इसलिए ऊर्जा देने वाले सूखे मेवे, मूंगफली, आदि खाएं जिससे आपका शरीर भी स्वस्थ रहेगा और कमजोरी नहीं आएगी।

माता शैलपुत्री की कहानी – माता शैलपुत्री की आरती

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा के बाद सपरिवार मिलकर ये आरती गाएं।

शैलपुत्री मां बैल पर सवार।

करें देवता जय जयकार।

शिव शंकर की प्रिय भवानी।

तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे।

जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।

ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।

दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी।

आरती तेरी जिसने उतारी।

उसकी सगरी आस पुजा दो।

सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के।

गोला गरी का भोग लगा के।

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।

प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे।

शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।

मनोकामना पूर्ण कर दो।

भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

माता शैलपुत्री की कहानी – शैलपुत्री की साधना

शास्त्रों के अनुसार शैलपुत्री मां दुर्गा की पहली स्वरूप है और जीव की उस नवजात शिशु अवस्था को संबोधित करती हैं जो निष्पाप, निर्मल और अबोध है। पूर्वजन्म में देवी प्रजापति दक्ष की पुत्री थी और महादेव की अर्धांगिनी।

माता शैलपुत्री का वर्ण चंद्रमा के समान है और इनके मस्तक पर चन्द्र स्वर्नमुकुट में शुशोभित है। मां शैलपुत्री को वृषारूढ़ा भी कहते हैं क्यूंकि ये बैल पर सवार है। बाएं हाथ में कमल का फूल और दाएं हाथ में त्रिशूल लिए हुई देवी शैलपुत्री की साधना का संबंध चन्द्रमा से है।

कुंडली में चन्द्रमा का संबंध चौथे भाव से होता है। इसलिए कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार शैलपुत्री का संबंध व्यक्ति के निवास स्थान, पैतृक संपत्ति, सुख, सुविधा, वाहन, माता, जायदाद, चल अचल संपत्ति, इत्यादि से है।

यदि आप मां शैलपुत्री की आराधना करते हैं तो आपके जीवन में स्थिरता आएगी। और साथ ही आपको मनपसंद वर या वधू, धन, नौकरी, आदि की प्राप्ति होगी।

वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार देवी शैलपुत्री की साधना का संबंध पश्चिमोत्तर दिशा और इंदु से है। मां शैलपुत्री का आधिपत्य जल स्त्रोत पर है, मतलब निवास स्थल में जहां शुद्ध चलायमान पानी एकत्रित करते हैं।

मां दुर्गा की प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की साधना से मनोविकार दूर हो जाते हैं। यदि आप प्रॉपर्टी या रियल एस्टेट से संबंधित काम करते हैं तो आपको माता शैलपुत्री की साधना करनी चाहिए।

चंद्रोदय के समय श्वेत पुष्प और मावे से बने भोग से इनकी साधना करें। अगर श्रृंगार की बात करे तो शैलपुत्री को चंदन अतिप्रिय है। शैलपुत्री मंत्र के जाप से व्यक्ति को मन की शांति मिलेगी और सभी दुख दूर हो जाएंगे।

माता शैलपुत्री की कहानी – नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की विधि

नवरात्रि के पहले दिन जो कि मां शैलपुत्री का दिन है, उसी दिन ही घटस्थापना की जाती है। घटस्थापना की विधिवत विधि आपकी जानकारी के लिए नीचे दी गयी है:

  • सबसे पहले पूजा स्थल पर मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित किया जाता है।
  • यह कलश अगले नौ दिनों तक उसी स्थान पर स्थित रहता है।
  • घटस्थापना करने के लिए एक थाली में अरवा चावल और साथ में पान, सुपारी, घी का दीप, माला, फल, फूल, गंगाजल, नारियल, मौली, लाल कपड़ा, बेलपत्र, रोली, चन्दन, आदि लें।
  • साथ ही साथ तांबे या मिट्टी का घड़ा, केले का खंबा, चंदन की लकड़ी, हल्दी की गांठ, पांच तरह के रत्न या आभूषण, और घर के दरवाजे पर लगाने के लिए आम के पत्ते रख लें।
  • और देवी की फोटो के की पूजा के लिए भी सामग्री तैयार कर लें।
  • यदि मूर्ति की पूजा करनी है तो घटस्थापना के लिए दुर्गा मां की सोने, चांदी या ताम्र मूर्ति सही है।
  • फिर आप विधिवत पूजा आरम्भ कर सकते हैं।

जैसा कि हमने आपको ऊपर भी बताया कि माता शैलपुत्री के हाथों में सुशोभित कमल और त्रिशूल। इनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है जो हम आपको बताने जा रहे हैं। माता का त्रिशूल तीन शक्तियों ज्ञान, श्री और शक्ति का प्रतीक है।

ज्ञान मतलब सरस्वती, श्री मतलब लक्ष्मी और शक्ति अर्थात कालिका। इसका मतलब यह है कि माता शैलपुत्री के अधीन तीनों विद्या, धन और शक्ति है। और इनकी भक्ति से इन तीनों की प्राप्ति होती है।

माता के हाथ में जो कमल का फूल है वो अत्यंत पवित्र, पूजनीय और सुंदर है। साथ ही साथ इसे शांति, सद्भावना, समृद्धि और बुराइयों से मुक्ति का प्रतीक भी कहा जाता है। यह कमल का पुष्प सुख और ऐश्वर्य का सूचक है।

इसी वजह से कमल के फूल को मां शैलपुत्री के पूजन में विशेष महत्त्व दिया जाता है। अब आपको पता चल गया होगा कि माता शैलपुत्री की कहानी क्या है, शैलपुत्री मंत्र का जाप कैसे करें, माता शैलपुत्री की पूजा विधि और आरती क्या है।

आशा है हमारी ये पोस्ट माता शैलपुत्री की कहानी आपकी उम्मीदों पर खरी उतरी होगी। अगर आपको हमारी ये पोस्ट पसंद आयी है तो इसको अपने परिवारजन और मित्रगन के साथ ज़रूर share करें।

FAQs – माता शैलपुत्री की कहानी पर सामान्य पूछे गए प्रश्न

What is the Meaning of Shailputri? शैलपुत्री का मतलब क्या है?

अंग्रेजी भाषा के अनुसार, “शैलपुत्री” नाम का शाब्दिक अर्थ है “पहाड़ बेटी (पुत्री)” (शैला)। उनके विभिन्न नामों में सती भवानी, पार्वती और हेमवती शामिल हैं, और वह हिमालय के राजा हिमावत की बेटी हैं।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व उनके द्वारा किया जाता है, जो एक बैल की सवारी करते हैं और उनकी संयुक्त शक्ति के प्रतीक के रूप में उनके दो हाथों में एक त्रिशूल और कमल होता है।

निर्माता-देवता ब्रह्मा की पत्नी होने के अलावा, वह गणेश की मां और संहारक-भगवान शिव, साथ ही देवताओं की बेटी हैं।

What is the color of Shailputri? माता शैलपुत्री को किस रंग में देखा जाता है?

चमकीले और जीवंत नारंगी रंग के साथ, उत्सव शैली में शुरू होता है। यह रंग ऊर्जा और खुशी से जुड़ा है।

इस दिन, हिंदू देवी शैलपुत्री की पूजा करते हैं। देवी शैलपुत्री को एक चमकदार सफेद साड़ी में दर्शाया गया है, जो पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है।

Why do we worship Shailputri? माता शैलपुत्री की पूजा क्यूँ करते हैं?

देवी शैलपुत्री (‘शैल’ का अर्थ पर्वत और ‘पुत्री’ का अर्थ बेटी) की पूजा त्योहार के पहले दिन की जाती है, और इसे हिमालय की बेटी पार्वती के रूप में भी जाना जाता है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, देवी को चंद्रमा की प्रभारी माना जाता है, जिसे सभी भाग्य का स्रोत माना जाता है। ज्यादातर समय वह बैल की सवारी करती नजर आती हैं।

What are the 9 Avataars of Durga? माता दुर्गा के ९ अवतार क्या हैं?

माता दुर्गा के ९ अवतार हैं:

1. देवी शैलपुत्री
2. देवी ब्रह्मचारिणी
3. देवी चंद्रघंटा
4. देवी कुष्मांडा
5. देवी स्कंदमाता
6. देवी कात्यायनी
7. देवी कालरात्रि:
8. देवी महागौरी
9. देवी सिद्धिदात्री:

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