Govardhan Pooja – 1st Beautiful Day After Diwali – गोवर्धन पूजा की कथा

Govardhan Pooja – 1st Beautiful Day After Diwali – गोवर्धन पूजा की कथा

Govardhan Pooja Kaise Karen? गोवर्धन पूजा की कथा/ कहानी एवं गोवर्धन पूजा कैसे करें।

हिन्दू धर्म में गायों को काफी महत्व दिया जाता है। हर घर में लोग गाय की सेवा करते हैं तथा गायों की पूजा के लिए एक विशेष पर्व गोवर्धन पूजा भी मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है और ये त्यौहार दीपावली के अगले दिन ही मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अपने आंगन में लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाते हैं और गोवर्धन भगवान की पूजा भी करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पूजा के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को तूफ़ानी बारिश से बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली से विशाल गोवर्धन पर्वत उठा लिया था।

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गोवर्धन पूजा कब है, गोवर्धन पूजा क्यों मनाते हैं, गोवर्धन पूजा की विधि क्या है, गोवर्धन पूजा की कहानी और शुभ मुहूर्त। गोवर्धन पूजा से जुड़ी ये सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े। 

गोवर्धन पूजा – What is Govardhan Pooja?

गोवर्धन पूजा में भगवान श्री कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों को पूजने का विधान है। इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बना कर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है। इस पकवान को अन्नकूट कहा जाता है और इसलिए गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहते हैं।

गोवर्धन पूजा के दिन ही भगवान कृष्ण ने देवराज इन्द्र के घमंड को तोड़ कर बृजवासियों को उनके कोप से बचाया था। तभी से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई। तो आइए देखते हैं कि गोवर्धन पूजा कब है, गोवर्धन पूजा क्यों मनाते हैं, गोवर्धन पूजा की विधि क्या है, गोवर्धन पूजा की कहानी और शुभ मुहूर्त क्या है।

When is Govardhan Pooja in 2023 – २०२३ में गोवर्धन पूजा कब मनायी जाएगी?

२०२३ में गोवर्धन पूजा सोमवार १३ नवम्बर को मनायी जाएगी।

गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है? Why do we celebrate Govardhan Pooja?

गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है ? इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है और इसकी शुरुआत कहां से हुई। गोवर्धन पूजा के उत्पत्ति की कहानी भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है।

ऐसा माना जाता है कि देवराज इंद्र को अपनी शक्ति और वैभव पर काफी घमंड हो गया था और उसी को तोड़ने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने यह लीला रची थी। मथुरा के ब्रज में श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं की है।

इसी वजह से ब्रज को स्वर्ग का हिस्सा माना जाता है और वृंदावन धाम और बृजधाम भी कहा जाता है। बृजधाम में हुई श्री कृष्ण की इन्हीं अनेक लीलाओं में से गोवर्धन पूजा की लीला काफी प्रमुख है।

Govardhan Pooja Story – गोवर्धन पूजा की कथा

एक दिन अपने बाल्यकाल में श्री कृष्ण अन्य ग्वालबालों के साथ खेल रहे थे। खेलने के पश्चात जब वे घर आए तो मां यशोदा पकवान बना रही थी। तब कृष्ण ने पूछा कि इतने पकवान और व्यंजन किसके लिए बन रहे हैं।

कृष्ण ने कहा कि उन्हें भी ये पकवान खाने है। तो मां यशोदा ने उन्हें बताया कि ये पकवान स्वर्ग के देवता इन्द्र के लिए बनाए जा रहे हैं और पहले उन्हें ही भोग लगाया जाएगा। इन्द्र को भोग लगाने के बाद ही बाकी लोग इसे खाएंगे। और यदि ऐसा नहीं हुआ तो इंद्र देव नाराज़ हो जाएंगे और बारिश नहीं होगी। बारिश ना होने से जमीन बंजर रह जाएगी और लोगों को अनाज नहीं मिल पाएगा।

Govardhan Pooja

यह सुनने के बाद कान्हा ने मां यशोदा को पूछा कि क्या उन्होंने कभी देवता इन्द्र को देखा है ? तो मां यशोदा ने कहा कि उन्होंने देखा तो नहीं लेकिन वृंदावन में ये हरियाली उन्हीं के वजह से है। और इसलिए सभी ब्रजवासी आज उनके लिए पकवान बना रहे हैं।

यह सुनकर कान्हा ने अपनी मां से कहा कि इस बार मेरे भगवान की पूजा करो जो कि दिखाई भी देते हैं और आप से पकवान मांग कर भी खाएंगे। यह बात श्री कृष्ण ने पूरे ब्रज में सभी लोगों को बताया। और सब लोग कृष्ण के देवता की पूजा करने को मान भी गए।

लोगों ने सोचा कि इंद्र देव इससे खुश होकर और अधिक वर्षा देंगे। कृष्ण सब लोगों को लेकर गिरिराज पर्वत के सामने खड़े हो गए। वहां सबने जब उनसे उनके भगवान के बारे में पूछा तो कान्हा ने आवाज़ लगाकर कहा कि गोवर्धन नाथ सभी ब्रजवासी आपको भोग लगाने आए हैं। तब गिरिराज पर्वत में से गोवर्धन देव ने सब को दर्शन दिए और पकवान मांग कर खाया।

भगवान गोवर्धन को अपने हाथों से भोग लगाकर सभी ब्रजवासी खुश हो गए। लेकिन इन्द्र देव इससे नाराज हो गए। इन्द्र को लगा कि एक सात साल के बच्चे के कहने पर ब्रजवासियों ने मेरी जगह एक पर्वत की पूजा की।

Anger of Indra – इन्द्र का क्रोध

इस बात से क्रोधित होकर इन्द्र देव ने ब्रज में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। अब ब्रजवासी काफी डर गए और कान्हा को जाकर कहा कि अब तुम ही हमारी रक्षा करो क्योंकि हमने तुम्हारे कहने पर ही इन्द्र की पूजा नहीं की। अब श्री कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत चलने को कहा।

जब सब वहां पहुंचे तो डरे हुए ब्रजवासियों को देख श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया। इस तरह उन्होंने सम्पूर्ण ब्रज वासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचा लिया।

क्रोधित इन्द्र देव ने ब्रज में सात दिनों और सात रात तक मूसलाधार वर्षा की। इन्द्र के पास जब जल समाप्त हुआ तो उन्हें लगा कि अब ब्रज खत्म हो गया होगा और ये देखने वो ब्रजभूमि पर आए।

वहां उन्होंने देखा कि धूल मिट्टी उड़ रही है और कृष्ण 21 किलोमीटर तक फैले गिरिराज पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए हुए हैं। यह देखकर इन्द्र श्री कृष्ण के पैरों में आ गए और उन्हें मनाने लगे। कृष्ण को मनाने के लिए इन्द्र ने उन्हें ऐरावत हाथी और कई वस्तुएं भेंट की लेकिन कृष्ण नहीं माने।

अब देवराज इंद्र ने नारद जी से सलाह ली और कृष्ण को सुरभि गाय भेंट कर क्षमा मांगी। जब ब्रजवासियों ने कृष्ण से पूछा कि तुमने इतना विशाल पर्वत कैसे उठा लिया तो कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा कि

कछु माखन को बल बढ्यो, कछु गोपन करी सहाय, राधा जी की कृपा से गिरवर लिया उठाय।

यह कहानी द्वापर युग की है और तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की परंपरा चली आ रही है। ब्रज में आज भी यह पूजा धूमधाम से की जाती है। तो अब आप जान गए होंगे कि गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है। आगे देखते हैं कि गोवर्धन पूजा की विधि क्या है।

गोवर्धन पूजा की विधि क्या है – How do we perform Govardhan Pooja?

अन्नकूट पूजा यानी कि गोवर्धन पूजा के दिन गेहूं, चावल या अन्य अनाज, बेसन की पीला ब्रज जैसे बनी कढ़ी और पत्ते वाली हरी सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है। यह सारा भोजन भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है।

गोवर्धन पूजा के दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ की प्रतिमा बनाई जाती है। फिर इस प्रतिमा की रोली, चंदन, खीर, चावल, बताशे, जल, दूध, पान, केसर और फूल से दीपक जलाकर पूजा अर्चना की जाती है।

साथ ही गोवर्धन नाथ के प्रतिमा की परिक्रमा भी करनी चाहिए। भगवान गोवर्धन नाथ को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस अन्नकूट में 56 तरह के खाद्यपदार्थ होते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन प्रदोष काल में श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।

और गाय की भी पूजा कर गुड़ और चना खिलाया जाता है। इस प्रकार गोवर्धन पूजा के दिन आप भगवान श्री कृष्ण की पूजा कर सकते हैं। तो ये थी गोवर्धन पूजा की विधि। अब देखते हैं कि इस दिन कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए और पूजा में किन किन सामग्रियों को शामिल करना चाहिए।

What is Govardhan Pooja Mantra – गोवर्धन पूजा मंत्र

गोवर्धन पूजा मंत्र –  गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।

हे कृष्ण करुणासिंधो दीनबंधो जगतपते। गोपेश गोपिकाकांत राधाकान्त नमोस्तुते।

Govardhan Pooja Ingredients – गोवर्धन पूजा की सामग्री

गोवर्धन पूजा में आपको इन सामग्रियों की जरूरत होगी – चावल, गेहूं, पान, फूल, गुड़, दूध, केसर, गंगाजल, बताशे, गाय का गोबर, रोली, चंदन, खीर, हरा चारा, दही, शक्कर, धूप, दीप, नैवेद्य, तुलसी, शहद, पीले फूलों की माला, बांसुरी, दक्षिणा, इत्यादि।

Govardhan Parvat Story – गोवर्धन पर्वत की कहानी / कथा

गोवर्धन पूजा की शुरुआत गिरिराज गोवर्धन पर्वत से जुड़ी है। जैसा कि आपने कहानी में देखा कि कैसे भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा कर देवराज इंद्र का घमंड तोड़ा था। गोवर्धन पूजा क्यों मनाते हैं, गोवर्धन पूजा की विधि और मंत्र के बाद देखते हैं कि गोवर्धन पर्वत की कहानी क्या है।

मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत एक समय में दुनिया का सबसे विशाल पर्वत हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यह पर्वत इतना विशाल था कि सूर्य को भी ढक लेता था। इसलिए गोवर्धन पर्वत को गिरिराज भी कहा जाता है।

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत प्रतिदिन तिल भर घटता है। इसके पीछे भी ek बड़ी रोचक कहानी है।

गिरिराज गोवर्धन पर्वत के प्रतिदिन घटने का कारण ऋषि पुलसत्य का श्राप है। एक बार जब ऋषि पुलसत्य गोवर्धन पर्वत के बगल से गुज़र रहे थे तो उन्हें इस पर्वत की खूबसूरती काफी पसंद आई।

उन्होंने द्रोणांचल पर्वत से कहा कि मैं काशी में रहता हूं और आप अपने पुत्र गोवर्धन पर्वत को मुझे दे दीजिए। गोवर्धन को वो काशी में स्थापित करना चाहते थे ताकि वहीं रहकर उसकी पूजा कर सकें। यह सुनकर द्रोणांचल पुत्र दुखी थे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि मैं आपके साथ काशी चलूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है।

शर्त यह थी कि ऋषि पुलसत्य गोवर्धन को जहां भी रख देंगे वो वहीं स्थापित हो जाएगा। ऋषि ने गिरिराज गोवर्धन की यह शर्त मान ली। तब गोवर्धन ने पूछा कि आप मुझ जैसे दो योजन ऊंचे और पांच योजन चौड़े पर्वत को काशी लेकर कैसे जाएंगे। तो ऋषि पुलसत्य ने कहा कि वे उसे अपने तपोबल से हथेली पर उठा कर ले जाएंगे।

जब ऋषि गोवर्धन को लेकर जा रहे थे तो रास्ते में ब्रज आया और गोवर्धन पर्वत को याद आया कि ब्रज में तो भगवान श्री कृष्ण अपने बाल्यकाल में लीला कर रहे हैं। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत ऋषि के हाथों में अपना भार बढ़ाने लगे।

अब ऋषि ने अपने आराम एवम् साधना के लिए गोवर्धन पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि यह भूल गए थे कि उन्हें पर्वत को कहीं भी रखना नहीं था। साधना करने के बाद जब ऋषि ने गोवर्धन को उठाने का प्रयास किया तो पर्वत हिला तक नहीं।

इस बात से ऋषि पुलसत्य काफी क्रोधित हुए और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को यह श्राप दे दिया कि हर रोज़ तिल भर तुम्हारा क्षरण होता रहेगा। ऐसा माना जाता है कि उसी दिन से प्रतिदिन गोवर्धन पर्वत घट रहा है और कलयुग के अंत तक यह पर्वत पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

Govardhan Pooja in Brij – ब्रज में गोवर्धन पूजा कैसे मनाते हैं

मथुरा समेत पूरे ब्रज मंडल में गोवर्धन पूजा का उत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि ब्रज मंडल में आने वाले गोवर्धन, वृंदावन, बरसाना, गोकुल और मथुरा क्षेत्रों में दुनिया भर के श्रद्धालु इकठ्ठा होते हैं।

दीपावली के बाद आने वाले गोवर्धन पूजा के लिए लाखों की संख्या में भक्त यहां आते हैं और धूमधाम से यह पर्व मनाते हैं। गोवर्धन पर्वत की 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा लगाने के बाद भक्तजन मंदिर में अन्नकूट भोज में भाग लेते हैं।

अन्नकूट भोज परंपरागत तरीके से की जाती है जिसमें चावल, कढ़ी, खीर, बर्फी, कई तरह की सब्जियां और मिठाइयां होती है। ब्रज का गोवर्धन पर्वत इस उत्सव का केंद्र है। देश विदेश से लोग आकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं और मानसी गंगा में स्नान भी करते हैं। इस प्रकार ब्रज में गोवर्धन पूजा बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

Importance of Govardhan Pooja – गोवर्धन पूजा का महत्व

हिन्दू धर्म के अनुसार गोवर्धन पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। गोवर्धन पूजा में खासतौर से गाय माता की सेवा एवम् पूजा की जाती है। लोग अपने परिवार की सुख शांति, अच्छे सेहत एवम् खुशियों के लिए भी यह पूजा करते हैं।

इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बालरूप को अच्छे से साज श्रृंगार के साथ शुभ मुहूर्त देखकर पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण के सामने अपनी मनोकामनाएं रखी जाती है और अगर सच्चे मन से आराधना करो तो वे पूर्ण भी होती है।

जैसा कि आप जानते हैं कि भारत के प्रत्येक त्योहार में कोई ना कोई वैज्ञानिक महत्व निहित रहता है। इसी तरह गोवर्धन पूजा का त्योहार भी प्रकृति एवं पशु का मानव के साथ संबंध स्थापित करता है।

गोवर्धन पूजा के दिन पशुओं और प्रकृति की पूजा होती है। गौमाता को हम साक्षात ईश्वर मानते हैं और इस दिन उनकी सेवा की जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र के घमंड को तोड़ ब्रजवासियों को यह सिखाया था कि हमें अपने पर्यावरण के महत्व को समझना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए।

अतः गोवर्धन पूजा से हमें भी ये सीखने को मिलता है कि अपनी प्रकृति का क्या महत्व है। तो ये थी गोवर्धन पूजा के बारे में जानकारी। इस लेख में हमने आपको गोवर्धन पूजा क्यों मनाते हैं, गोवर्धन पूजा मंत्र, सामग्री, विधि और गोवर्धन पूजा का महत्व बताया है।

यहाँ पर हमारा ये लेख – Govardhan Pooja – 4th Festive Day in Diwali – गोवर्धन पूजा की कथा समाप्त होता है।

उम्मीद है आपको यह लेख पढ़ अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ हो। यदि गोवर्धन पूजा से जुड़ी कोई और बात आप हमसे शेयर करना चाहते हो तो आप कमेंट कर बता सकते हैं।

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