करवा चौथ में छलनी का महत्व क्या है? – What is the Importance of Sieve in Karvachauth?
Contents
- 1 करवा चौथ में छलनी का महत्व क्या है? – What is the Importance of Sieve in Karvachauth?
- 2 क्या है करवा चौथ और कब मनाया जाता है (When Karwa Chauth Is Celebrated)
- 3 करवा चौथ का महत्व और कहानी (History and stories of Karwa Chauth)
- 4 करवा चौथ में छलनी का महत्व – पूजा की थाली में छलनी होना क्यों है जरूरी
- 5 करवा चौथ व्रत का महत्व (Importance Of Karwa Chauth)
दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर सुहागन स्त्री के लिए करवाचौथ का व्रत काफी महत्वपूर्ण होता है। सभी विवाहित स्त्रियाँ साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं इन दिन महिलाएँ सजती-संवरती हैं और व्रत की सभी विधियों को बड़े ही श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं।
प्यार और आस्था के इस पावन पर्व पर सुहागिन स्त्रियाँ पूरा दिन उपवास रखकर भगवान से अपने पति की लंबी उम्र और गृहस्थ जीवन में सुख की कामना करती हैं। वैसे तो करवा चौथ मुख्य रूप से हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। कुछ जगहों पर इसे कारक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। ‘
ये मुख्यतः पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। लेकिन अब भारत के कई अन्य हिस्सों की महिलाएँ भी अपने पति और गृहस्थ जीवन की मंगल कामना के लिए इस त्यौहार को मनाती हैं। ये त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
कुछ राज्यों में अविवाहित स्त्रियाँ भी अच्छे वर की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं पर मुख्य रूप से इस व्रत का महत्व विवाहित स्त्रियों के लिए माना जाता है। तो आइये आपको बताते हैं ये त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है।
इसका इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताएँ क्या हैं। साथ ही आपको बताएँगे करवा चौथ की पूजा में छलनी का क्या महत्व है और करवा चौथ में छलनी का महत्व इतना ज़्यादा क्यूँ है?। इसका प्रयोग इतना जरूरी क्यों है। और इसके बिना पूजा करने पर पूजा अधूरी क्यों मानी जाती है।
क्या है करवा चौथ और कब मनाया जाता है (When Karwa Chauth Is Celebrated)
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। कार्तिक हिंदी महीना है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्टूबर और नवंबर के बीच का समय है।
2021 में करवा चौथ 24 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। ‘करवाचौथ’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘करवा’ यानी ‘मिट्टी का बरतन’ और ‘चौथ’ यानि ‘चतुर्थी तिथि’ इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन जिसे करवा कहा जाता है उसका विशेष महत्व है।
करवा चौथ का महत्व और कहानी (History and stories of Karwa Chauth)
करवा चौथ के इस त्यौहार से के कहानियाँ, किंवदंतियाँ और मिथक जुड़े हुए हैं। इसके महत्व को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं। हम आपको करवा चौथ से जुड़ी ऐसी कई पौराणिक और लोक कथाएँ हैं जिसमें से कुछ के बारे में हम आपको बताते हैं।
करवा चौथ में छलनी का महत्व – पहली कथा
पहली लोक कथा है कि एक समय वीरवती नामक एक सुंदर राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की इकलौती प्यारी बहन थी। उसकी शादी हो गयी और अपने पहले करवा चौथ व्रत के दौरान अपने भाइयों के घर पर ही थी। उसने सुबह सूर्योदय से ही उपवास शुरू कर दिया था।
उसने बहुत सफलतापूर्वक उसका पूरा दिन बिताया हालांकि शाम को उसने बेसब्री से चंद्रोदय के लिए इंतज़ार करना शुरू कर दिया क्योंकि वह गंभीर रूप से भूख और प्यास पीड़ित थी। उसकी यह दयनीय दशा उसके भाइयों के लिये असहनीय थी क्योंकि वे सब उससे बहुत प्यार करते थे। उन्होंने उसे समझाने का बहुत कोशिश की कि वह बिना चाँद देखे खाना खा ले हालांकि उसने मना कर दिया।
तब उन्होंने पीपल के पेड़ के शीर्ष पर एक दर्पण से चाँद की झूठी छाया बनायी और अपनी बहन से कहा कि चंद्रमा निकल आया। वह बहुत मासूम थी और उसने अपने भाइयों का अनुकरण किया। गलती से उसने झूठे चाँद को देखकर उसे अर्घ्य देकर उसने अपना व्रत तोड़ लिया। तभी उसे अपने पति की मौत का संदेश मिला।
उसने जोर जोर से रोना शुरु कर दिया उसकी भाभी ने उसे बताया कि उसने झूठे चांद को देखकर व्रत तोड़ दिया जो उसके भाइयों ने उसे दिखाया था, क्योकि उसके भाई उसे भूख और प्यास की हालत को देखकर बहुत संकट में थे।
वह बहुत रोई और देवताओं से क्षमा याचना की। जल्द ही देवी शक्ति उसके सामने प्रकट हुई और उसे बताया कि शाप के कारण उसके पति की मृत्यु हुई है। और अब उसे पूरी भक्ति के उसकी करवा चौथ का व्रत दोहराना चाहिए। जल्द ही व्रत पूरा होने के बाद उसके पति को जीवन दान मिला। इसलिए तभी से औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए ये व्रत रखती हैं।
कहीं कहीं यह माना जाता है, पीपल के पेड़ के ऊपर एक दर्पण रखकर एक झूठे चाँद बनाने के बजाय रानी वीरवती के भाइयों ने अपनी बहन को झूठा चन्द्रमा दिखाने के लिये पर्वत के पीछे बहुत बडी आग लगायी।
और कह दिया कि ये चंद्रमा है और उसके बाद उसने बड़ी आग के झूठे चंद्रमा को देखकर अपना उपवास तोड़ दिया और उसे संदेश मिला कि उसने अपने पति को खो दिया। वह अपने पति के घर की ओर भागी हालांकि मध्य रास्ते में, शिव-पार्वती उसे दिखाई दिये और उसे उसके भाइयों भावना में बहकर किये गए इस छल के बारे में बताया।
उसे तब देवी द्वारा बहुत ही ध्यान से उसे फिर से उपवास पूरा करने के लिए निर्देश दिये गये। उसने वैसा ही किया और उसे उसका पति उसे वापस मिल गया।
करवा चौथ में छलनी का महत्व – दूसरी कथा
इस त्योहार का जश्न मनाने के पीछे एक और कहानी सत्यवान और सावित्री की है। एक बार, यमराज सत्यवान के पास उसके प्राण लेने के लिए पहुंच गये। जब सावित्री इस के बारे में पता चला, तो उसने अपने पति का जीवन देने के लिए यम से विनती की लेकिन यमराज ने इनकार कर दिया।
तो उसने अपने पति का जीवन पाने के लिये बिना कुछ खाये पीये यम का पीछा करना शुरु कर दिया। यम ने उसे अपने पति के जीवन के बदले कुछ और वरदान माँगने को कहा।
वह बहुत चालाक थी उसने यमराज से कहा कि वह एक पतिव्रता स्त्री है और अपने पति के बच्चों की माँ बनना चाहती है। उसने यमराज को उसके बयान ने सहमत होने के लिए मजबूर कर दिया और उसे उसके पति के साथ लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया। और इसलिए औरतें भी भूखे प्यासे रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
करवा चौथ में छलनी का महत्व – तीसरी कथा
एक बार करवा नामक एक औरत थी, जो अपने पति के लिए पूर्ण रुप से समर्पित थी जिसके कारण उसे महान आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त थी। एक बार, करवा का पति नदी में स्नान कर रहा था और तभी अचानक एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया।
उसने मगरमच्छ को एक सूती धागे का इस्तेमाल करके बांध लिया और यम को मगरमच्छ को नरक में फेंकने के लिए कहा। और उन्हें ऐसा करना पड़ा क्योंकि उन्हें पतिव्रता स्त्री करवा के शाप लगने का भय था। उसे उसके पति के साथ लम्बी आयु का वरदान दिया। उस दिन से, करवा चौथ का त्यौहार भगवान से अपने पति की लंबी उम्र पाने के लिए आस्था और विश्वास के साथ महिलाओं द्वारा मनाना शुरू किया गया।
ऐसा भी माना जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने श्री कृष्ण के कहने पर पांडवों की रक्षा के लिए ये व्रत रखा था।
करवा चौथ में छलनी का महत्व – पूजा की थाली में छलनी होना क्यों है जरूरी
करवा चौथ में छलनी का महत्व क्यूँ है? करवा चौथ की पूजा में छलनी का विशेष महत्व माना जाता है। करवा चौथ की पूजा की थाली सजाते समय बाकी चीजों के साथ छलनी को भी थाली में जरूर जगह दी जाती है। महिलाएं इसी छलनी से पति का चेहरा देखकर अपना करवा चौथ का व्रत पूरा करती हैं।
पूजा के दौरान महिलाएँ छलनी में दीपक रखकर चांद को देखने के बाद अपने पति का चेहरा देखती हैं और इसके बाद अपने पति के हाथों से पानी पीकर शादीशुदा महिलाएँ अपना व्रत पूरा करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्या वजह है कि छलनी से ही देखा जाता है पति का चेहरा। और पूजा की थाली में छलनी का क्या महत्व होता है?
तो आइए आपको बताते हैं की करवा चौथ की पूजा की थाली में छलनी का महत्व क्या है और किस वजह से छलनी से देखा जाता है पति का चेहरा। इस दिन स्त्रियाँ पूरा दिन निर्जल व्रत करके रात को पूजा करने के बाद छलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं।
करवा चौथ में छलनी का महत्व
इस व्रत में चन्द्रमा को छलनी में से देखने का विधान इस बात की ओर इंगित करता है, पति-पत्नी एक दसरे के दोष को छानकार सिर्फ गुणों को देखें जिससे पति पत्नी का ये रिश्ता प्यार और विश्वास की मजबूत डोर के साथ हमेशा बंधा रहे।
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है साथ ही साथ चंद्रमा को लंबी उम्र का वरदान प्राप्त है। इसलिए औरतें भी अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए चाँद को पूजती हैं और इसे छलनी से देखती हैं।
साथ ही चाँद में सुंदरता, प्रसिद्धि, शीतलता, प्रेम और लंबी उम्र जैसे गुण भी हैं। और शादीशुदा महिलाएं चाँद को देखकर उनके इन सब गुणों की कामना अपने पति के लिए भी उनसे करती हैं। करवाचौथ व्रत में छलनी का महत्व इसलिए भी है क्योंकि छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवा चौथ व्रत की इस कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक महिला ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ निर्जल व्रत रखा था।
व्रत के समय वह महिला अपने भाइयों के घर पर थी। पूरा दिन कुछ ना खाने की वजह से महिला की हालत बिगड़ने लगी थी। उसके भाइयों से उसकी ऐसी अवस्था देखी ना गयी और उन्होंने अपनी बहन को व्रत तोड़ने के लिए काफी समझाया।
लेकिन वो महिला व्रत खोलने को राजी ना हुई और इसी बात पर टिकी रही कि चाँद निकलने के बाद ही अपना व्रत खोलेगी। पर उसके भाई इन सब रीति रिवाजों में नहीं मानते थे और इसी लिए भावुकता में आकर एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी।
तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी – देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। झूठा चाँद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को शाप मिला और उसके पति की मृत्यु हो गयी। उसके बाद काफी विलाप के बाद ब्राह्मण स्त्री देवी देवताओं से गुहार लगाने लगी और अपने पति को पुनः जीवित करने की याचना की।
उसी समय रानी इंद्राणी वहाँ से निकल रही थी उनसे इस दुखी ब्राह्मण कन्या का दुख देखा नहीं गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला।
जब ब्राह्मण स्त्री ने उनसे अपने इस दुख का निवारण पूछा तो रानी इंद्राणी ने उसे बताया कि चूंकि उसके पति की मृत्यु शाप के कारण हुई है और शाप वापस लेना नामुमकिन है इसलिए तुरंत उसके पति को जीवन दान नहीं दिया जा सकता।
परंतु यदि वह स्त्री आने वाले पूरे साल में हर चतुर्थी तिथि को उपवास कर पूजा करेगी तो देव प्रसन्न होकर उसके पति का जीवन लौटा देंगे। रानी इंद्राणी की बात सुनकर वह स्त्री प्रसन्न हुई और इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। और अपनी भाइयों की इस गलती के लिए चंद्र देवता से क्षमा माँगी।
और जब अगले साल करवा चौथ आया तो उसने पुनः करवाचौथ के दिन पूरे विधि विधान से व्रत करके दोबारा छलनी से वास्तविक चाँद देखा उसके बाद पतिव्रता स्त्री को पति को पुनः जीवन प्राप्त हुआ। और तब से छलनी से चाँद देखने की परंपरा शुरू हुई। जब उस ब्राह्मण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई।
करवा चौथ में छलनी का महत्व कहीं ना कहीं रानी इंद्राणी के सौभाग्यवती होने की कथा से जुड़ा है। इसलिए प्रत्येक स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती है और अपने कुशल वैवाहिक जीवन की कामना करती है।
यही नहीं करवा चौथ में छलनी का महत्व कुछ अलग नज़रिए से भी देखा जा सकता है। ऐसा भी माना जाता है कि छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है। इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चाँद देखती है ताकि कथा वाली उसी स्त्री की तरह कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर उसका व्रत भंग न कर सके।
करवा चौथ में छलनी का महत्व के पीछे और भी सीख है। करवा चौथ में छलनी को लेकर चाँद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे पतिव्रत से डिगा न सके। और वे पूरी उम्र अपने पति व्रत धर्म का पालन कर सकें। करवा चौथ की जितनी भी कथाएँ प्रचलित हैं उन सभी कथाओं में भाई के द्वारा छलनी से झूठे चाँद को दिखाने का वर्णन मिलता है।
उस घटना को याद करते हुए आज भी महिलाएँ करवाचौथ का व्रत छलनी से चाँद देखकर ही खोलती हैं। एक अन्य मान्यता यह भी है कि छलनी के जरिये चांद को बहुत बारीकी से देखा जाता है और उसके बाद छलनी में दीपक रखकर पति का चेहरा देखा जाता है।
जब दीपक की पवित्र रोशनी का प्रतिबिंब जीवनसाथी के चेहरे पर पड़ता है तो पत्नी इसी रोशनी को साक्षी मानकर दोनों के रिश्ते में सदैव उजियाला और खुशहाली बने रहने की भी कामना करती है। तो ये था करवा चौथ में छलनी का महत्व का व्याख्यान।
करवा चौथ व्रत का महत्व (Importance Of Karwa Chauth)
भारत देश में हर विवाहित स्त्री के लिए करवा चौथ बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। इस दिन वो सब सोलह श्रृंगार कर चंद्र देव की पूजा करती हैं और अपने पति की लंबी आयु और अपने कुशल वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। जैसा कि हमने देखा इस त्यौहार और इसके रीति रिवाजों को लेकर कई लोक कथाएँ और मिथक प्रचलित तो हैं लेकिन भारत के उत्तरी राज्यों में इस त्यौहार को मनाने का मुख्य कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन इसे लेकर मान्यताएँ बहुत गहरी हैं।
हमारी ये जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट में जरूर बताइए। इसे करवा चौथ का व्रत रख रही अपनी friends के साथ share करें। धन्यवाद!
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